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दीपावली त्यौहारों का एक पुंज

Social issues
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प्रगति जिसे अंग्रेजी में प्रोग्रेस कहते हैं का क्या यह मतलब है कि अपने समाज की पारंपरिक व्यस्थाओं को छोड़कर पश्चिमी सभ्यता, उसकी संस्थाएं, उसके तौर तरीकों को बिना समझे बूझे अपना लिया जाये ? बदलते समय के साथ साथ होली व दीपावली का स्वरूप भी बदल रहा है I सामाजिकता, जो इसकी आत्मा थी , सिमटकर मोबाइल संदशों तक रह गयी है I यही नहीं दीपावली व होली पर बेटे बहुएं अपने बच्चों के साथ माता पिता के पास जाते थे और भैया दौज पर बहिनें भाईओं के माथे पर तिलक लगाने जाती थीं I अब यह रिश्ते भी मोबाइल पर औपचारिकता निभा रहे हैं I पहले दीपावली की प्रतिपदा को पंचमेल मिठाई घर घर में बांटी जाती थी और अब मेवों के बड़े बड़े डब्बे, फलों की टोकरियाँ और शराब की बोतलें “उपयोगी लोगों के पास “ भिजवाई जाती हैं I पहले धन तेरस पर सजधजकर बाज़ार जाया जाता था और पूजा के लिए धातु की कोई वस्तु या बर्तन खरीद कर घर लाये जाते थे और अब घर बैठे ही ऑनलाइन शौपिंग हो जाती है I जो सम्बन्ध धनतेरस के बाज़ार में नए हो जाते थे अब दम तोड़ रहे हैं I साधनों की अतिउप्लब्धता ने उमंग और तरंग, प्रेम और पुलक, भाव और अनुभूति को दिवालिया कर दिया है I दिवाली केवल धनवानों का त्यौहार प्रतीत होने लगी है I इसमें सबसे चिंता की बात है कि सामाजिक हताशा जन सामान्य में पनप रही है और सांस्कृतिक चेतना का क्षरण हो रहा है I
दीपावली अपने आप में एक अकेला त्यौहार नहीं है यह तो पांच त्याहारों का एक पुंज है जैसे दीपावली खुद एक दीपमाला है I पहला त्यौहार धनतेरस है जिस दिन घर की साफ़ सफाई की जाती है, धातु कि कोई वस्तु खरीदी जाती है तथा धन के देवता कुबेर की पूजा होती है I इसके अगले दिन छोटी दिवाली यानि नरकचतुर्दशी होती है I इस दिन भी घर का कूड़ा करकट साफ़ किया जाता है और सुख और वैभव की कामना की जाती है I तीसरे दिन होती है दीपावली I इसी दिन चौदह वर्ष के वनवास के बाद रावण का वध कर भगवान राम अयोध्या वापस आये थे I अयोध्यावासियों ने राम के आगमन की ख़ुशी में और सत्य की असत्य पर जीत के उपलक्ष्य में दीप जलाये थे I जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान महावीर का निर्वाण दिवस भी यही है I सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह को इसी दिन मुगलों से रिहाई मिली थी और इसी दिन गुरु अर्जुन देव ने स्वर्ण मंदिर की स्थापना की थी I स्वामी रामतीर्थ का जन्म भी दीपावली के दिन हुआ था I भगवान महावीर के निर्वाण को आध्यात्मिक प्रकाश के प्रतीक के रूप में मिटटी के दीप जलाकर उस युग के निर्णायक चिन्तक वर्ग ने भारतीय चिंतनधारा को प्रतिबिंबित किया जो प्रतीकों के माध्यम से अध्यातम मूल्यों की स्थापना करती है I निर्वाण का अर्थ है बुझना I आध्यात्मिक अर्थ में बुझने का मतलब है मुक्ति और मुक्ति प्रकाशित होना ही तो है जिसके प्रतीक स्वरूप दिये जलाये जाते हैं और दीपक गहन अन्धकार को भेद प्रकाश फैलाता है I यह सभी समुदायों का दीप पर्व है, निर्वाण पर्व है /लौकिक और अलौकिक कल्याण पर्व है I लक्ष्मी देवी की उपासना कर सुख सम्पनता का आह्वान किया जाता है I लौकिक सुखों और धन की हर व्यक्ति को आवश्यकता है इसलिए यह केवल हिन्दुओं का त्यौहार नहीं है बल्कि सभी समुदाय व् वर्ग का त्यौहार है I
दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है और कृषि प्रधान समाज होने के कारण इस दिन गाय का दूध नहीं दुहा जाता व बैलों पर बोझ नहीं लादा जाता I अंतिम पांचवे दिन भैया दौज का पर्व होता है जो भाई बहिन के प्रेम का प्रतीक पर्व है I दीपावली, यह अपने मूल में अमावस्या की काली रात में प्रकाश के आह्वान के साथ साथ पर्यावरण और नाते रिश्तों को लेकर भी हमारी संवेदनाओं को व्यक्त करती है I अफसोस अब यह वैभव के प्रदर्शन तक सिमट कर रह गया है I सामाजिकता जो इसकी आत्मा थी वोह सिमटकर मोबाइल संदेशों तक रह गयी है I क्या इसका कारण प्रगति है ? क्या इसका कारण बाज़ारवाद है ? क्या प्रगति कि रेस में हम असंवेदनशील हो रहे हैं ? आज़ादी के बाद देश की सभ्यता, श्रेष्ठता को स्थापित करने के लिए कुछ करने के स्थान पर उसे और अधिक मैला और धूमिल करने का काम देश के नेतृत्व ने किया है और आज भी राष्ट्र भक्ति के ढोल बजाये जा रहे हैं लेकिन भारत की बिखरती सामाजिक व्यवस्था पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा I तभी तो देश में “लिव इन रिलेशन” में रहने वाले युवक युवतियों की संख्या बढ़ रही है I देश में तलाक लेना एक सामान्य सी घटना के रूप में दिखने लगा है I वृद्ध माता पिता अपने को असहाय महसूस करने लगे हैं I पहले तो परिवार सिमट रहे थे अब विघटित हो रहे हैं I

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