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भारतीय संस्कृति के द्वारा सामाजिक समरसता और सहिष्णुता के लिए दिया बीजमंत्र “वसुधैव कुटम्बकम” के आधार पर ही सविंधान निर्माताओं ने संविधान की प्रस्तावना की शुरआत “हम भारत के लोग” वाक्य से प्रारंभ की I “‘वसुधैव कुटम्बकम” का मतलब होता है कि समस्त पृथ्वी ही परिवार हैIपृथ्वी तो विभिन्न देशों का समूह है उनमें से हमारा देश भारत विभिन्न धर्मों,जातियों,भाषाओँ व विभिन्न मान्यताओं वाले लोगों का एक समूह है I परिवार तो एक छोटी से इकाई है वो किस समूह का सदस्य है इसकी चर्चा अप्रसांगिक है I हमारे समाज में संयुक्त परिवार विघटित होकर एकल परिवार में बदल गए और अब उसी एकल परिवार के सदस्यों के बीच समरसता व सहिष्णुता लुप्त हो रही है I बच्चों के पास अपने बुजुर्ग माता – पिता से फ़ोन पर भी बात करने का समय नहीं व सोचनीय यह है कि होली – दीपावली पर भी माँ – बाप के पास आने में आर्थिक कठिनाई की बात होती है Iवृधावस्था बोझ बन रही है Iकानून के द्वारा वृद्धजनों के संरक्षण की बात होने लगी है तो समरसता कंहा दिख रही है I पति व पत्नी के बीच भी समरसता बढ़ते सामाजिक व मानसिक तनाव के कारण घट रही है Iराजनैतिक लोगों के बीच में परिवार की धारणा परिवारवाद की अवधारणा में बदल गयी है I अपने सत्ता मद व वर्चस्व की खातिर राज नेता परिवारवाद की अवधारणा से जुड़ गए लेकिन परिवार की मुख्य परिकल्पना से कोसों दूर हैं Iआज़ादी से पूर्व देश में दलितों और मुसलमानों के साथ छुआछूत का माहोल था उस वक्त बर्तन अलग थे लेकिन दिल मिले हुए थे आज बर्तन तो एक हो गए हैं पर दिल बंट गए I महात्मा गाँधी जी चाहते थे कि संविधान में ऐसे प्रावधान हों जिनसे दलितों और अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा हो सके I जिस कार्य को संविधान निर्मात्री समिति के अध्यक्ष डॉ अम्बेडकर जी ने कुशलता पूर्वक किया I उस समय सत्ता से अधिक देश की चिंता थी इसीलिए कैबनिट में गैर कोंग्रसी सदस्य भी थे I आज देश की चिंता से अधिक सत्ता की चिंता है इसीलिए राजनैतिक दलों ने दलितों, अल्पसंख्यकों आदि को अपने वोट बटोरने का माध्यम बना दिया है व समाज को विभाजित कर दिया है I डॉ अम्बेडकर जी ने हिंदी को राष्ट्र भाषा बनने की गुंजाईश रखी थी वे चाहते थे की सीमित समय में हिंदी को सक्षम बनाकर उसे राष्ट्र भाषा बना दें लेकिन संशोधन लाकर “जब तक एक भी राज्य हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने के विरुद्ध होगा तब तक हिंदी और अंग्रेजी संपर्क भाषा बनी रहेगी” I इसका नतीजा यह हुआ कि हिंदी क्षेत्रीय भाषा बन कर रह गयी और अंग्रेजी की व्यापकता बढ़ गयी I अंग्रेजी माध्यम के स्कूल खुलते गए जिनसे समाज का भला तो नहीं हुआ बल्कि एक वर्ग की तिजोरियां धन से भरने लगीं I भाषा के नाम पर भी समाज का विभाजन I
गणतंत्र दिवस पर झंडा फैहराने व नारे लगा कर अपने द्वारा किये गए पिछले 66 वर्षों में किये गए कार्यों व विकास पर अभिमान करने के स्थान पर युवा पीढ़ी को कुछ सार्थक करने की पहल करनी होगी Iहर वदलाव का सूत्रधार युवा वर्ग होता है उसे समाज के सभी वर्गों के हित की सुरक्षा संविधान की मूल भूत आत्मा के अनुसार करनी होगी I समाज में बढ़ता भेद भाव मिटाना होगा I पहल अपने परिवार से करें I नारी – पुरुष का भेद मिटायें I भाई – भाई के बीच समरसता की दरिया बहायें I
गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभ कामनाओं के साथ I जय हिन्द I जय भारत
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