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संसद सत्र या राजनेतिक भ्रस्टाचारियों का सम्मेलन

Social issues
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संसद सत्र या राजनेतिक भ्रस्टाचारियों का सम्मेलन
संसद का शीतकालीन सत्र यानि राजनेतिक भ्रस्टाचारियों का सम्मेलन समाप्त I एक बार फिर देशहित में सार्थक चर्चा करने वाला मंच राजनैतिक लाभ उठाने के उद्देश्य से हंगामा करने वालों का केंद्र दिखाई दिया I बिडम्बना ये रही की बहुत सारे बिल राज्यसभा ने बिना किसी चर्चा के पास कर दिये व माननीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के विरुद्ध DDCA में हुए भ्रस्टाचार के मामले में संसद में CBI इन्कुआरी कराने की मांग भाजापा सांसद कीर्ति आजाद जी के द्वारा की गयी I जिसे पार्टी विरोध की संज्ञा देते हुए अनुशाशानाताम्क कार्यवाही कर दी और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया I अपना अपना वर्चस्व स्थापित करने में लगे राजनेता राष्ट्रीय हितों के प्रति क्यों उदासीन हैं ?जागरुक मतदाता के लिए एक सवाल है कि भ्रस्टाचार के मुद्दे को जाग्रत कर चुनाव जीतने वाली भाजापा आज अपने ही सांसद को दण्डित कर रही है ? क्या भ्रसटाचार की परिभाषा अपनी पार्टी और विपक्षी पार्टी के लिए संविधान में अलग – अलग लिखी गयी है ? दो विपरीत आचरण एक तब जन माननीय प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी जी के मना करने के उपरांत भी माननीय लाल कृषण अडवानी जी ने हवाला के अंतर्गत लिप्त होने का आरोप लगते ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया था I दूसरा यह कि माननीय मोदी जी जेटली जी के अडवानी जी की तरह आरोप से मुक्त हो जाने की बात तो कर रहे हैं परन्तु उन्हें अडवानी जी के नकशे कदम पर चलने की सलाह भी नहीं दे रहे I क्या भाजापा भी कांग्रेस के पद चिन्हों का अनुसरण कर रही है ? माननीय इंदिरा गाँधी जी ने सत्ता के केंद्र में बने रहने के लिए विरोध में उठे स्वरों को दबाने का कार्य शुरू किया था I क्या भाजापा भी विरोध करने वाले राजनेताओं का मुँह बंद करना शुरू कर रही है ?
आज का राजनैतिक माहोल यह बता रहा है कि कोई भी इंदिरा गाँधी जी जैसा सशक्त नेता नहीं है और निकट समय में लोक सभा और राज्य सभा में एक ही राजनैतिक दल का बहुमत होने की आशा भी नहीं है I संविधान में भारत को सेक्युलर राष्ट्र कहा गया है और भाजापा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचार धारा से प्रभावित है और वो हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा से दूरी बनाती नहीं दिखाई देती Iजिस कारण से ही कट्टर हिंदूवादी संगठन भाजपा के रास्ते में रोड़े अटकाते रहते हैं I
राष्ट्र हित में विद्वानों ने बहस जारी कर दी है कि उच्च सदन राज्यसभा के अधिकार सीमित कर दिये जायें I कुछ लोग सयुंक्त सदन की मीटिंग के पक्षधर हैं I कुछ लोग संविधान में संशोधन कर राज्य सभा का अस्तित्व ख़त्म करने की सलाह दे रहे हैंI राष्ट्र हित में चिंतित हैं सभी I पर ये कोई भी कार्य राजनेताओं की सहमति के बिना देश में संभव नहीं I जरूरत है मतदाताओं के जागरुक होने की, प्रत्याशी के गुण दोष के आधार पर निष्पक्ष मतदान करने की I जब भी सांसद/विधायक क्षेत्र में आये तो राजनैतिक भ्रस्टाचार पर उनसे जवाब मांगे I

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