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क्या असहिष्णुता पर चलने वाली बहस व संचार माध्यमों पर लोगों की त्वरित प्रतिक्रिया दबी हुयी चिंगारी को भड़काने का कार्य कर रही है?

Social issues
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भारत वर्ष विभिन्न धर्मों, भाषाओँ, व जातियों का एक अभूतपूर्व संगम है I लोकतान्त्रिक देश में समरसता का मूल आधार होता है उस जनसमाज की परस्पर सहिष्णुता I यह भी अकाट्य सत्य है कि मानव अति संवेदनशील है और जाने अनजाने में भी जब उसकी भावनाएं आहत हो जाती हैं तो वह परस्पर प्रेम और सदभाव को भूल कर बैर ठान लेता है I जब एक बार संबंधों में गाँठ पड़ जाती है तो आसानी से नहीं खुलती Iयह स्थिति जब रक्त संबंधों में पाई जा रही है तो जनसमाज कैसे अछूता रह सकता है Iइसीलिए असहिष्णुता समाज में व्यापत है I हाल के समय में देखा जा रहा है कि राजनेता अपने दलगत लाभ को देखते हुए कुछ जाती और धर्मों से जुड़े संवेदनशील मामलों में बेतुके बयान देकर सामाजिक सदभाव को आघात पंहुचा रहे हैं जिस कारण इन्टरनेट पर , फेसबुक, ट्विटर और अन्य सोशल साइट्स पर लोंगों के बीच सार्थक संवाद के स्थान पर गाली-गलौज,असहिष्णुता और वाचिक हिंसा की घटनाएं बढ़ गयी हैं I असहिष्णुता समाज में पहले से ही राख में दबी चिंगारी की तरह से मौजूद हैंI क्या असहिष्णुता पर चलने वाली बहस व संचार माध्यमों पर लोगों की त्वरित प्रतिक्रिया दबी हुयी चिंगारी को भड़काने का कार्य कर रही है?
संसद में संविधान पर दो दिन लम्बी बहस चली तत्पश्चात दो दिन तक असहिष्णुता पर भी माननीय सांसद गाल बजाते रहे परन्तु सार्थक नतीजे नहीं मिले I माननीयों के बीच व्याप्त असहिष्णुता ही संसद को ठप्प रहने का एकमात्र कारण है जिसे प्रसार व संचार माध्यमों के द्वारा जनता के बीच बहुत अच्छी तरह से पहुँचाया जा रहा है I इन सब बातों से जनता के बीच प्रेम व सदभाव पर कैसा प्रभाव हो रहा है इससे किसी भी राजनेता व लेखक को कोई मतलब नहीं है Iराजनैतिक लाभ के साथ – साथ आर्थिक लाभ व प्रतिष्ठा संयोजन का भी ध्यान रखा जा रहा है I यह बिलकुल उसी तरह है जैसे दो भाईयों के बीच पनपी असहिष्णुता के दौरान अन्य सम्बन्धी व पडोसी अपने लाभ का आकलन करते हैं I कोई उनके विभाजित हो जाने पर उनकी संपत्ति खरीदता है तो कोई कमजोर को अपने आदेशों का पालन करने के लिए वाध्य करता है अहसान जताते हुए कि तुम्हारे बुरे समय में हम ही थे जो सामने आये Iसमस्या है तो केवल सामाजिक ,आर्थिक रूप से कमजोर व संवेदनशील लोगों की जो प्रभावित होकर देश का अहित करने वाली शक्तियों के चंगुल में फंसकर अपना व समाज और देश का अहित करते हैं I
माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी के द्वारा जागरण फोरम में दिये गए वक्तव्य के सम्पादित अंश से कुछ पंक्तियाँ लिख रहा हूँ I “ हम देखते हैं कि पत्रकारिता हमारे देश में मिशन मोड पर चलती रही है I एक कालखंड था जब समाज की बुराईयों को दूर करने के लिए मिशन मोड पर पत्रकारिता की गयी I दूसरा कालखंड आया जब देश को आज़ादी दिलाने के लिए यह काम किया गया I तीसरा काम अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने का था “
क्या आज पत्रकारिता समाज में चिंगारी की तरह दबी असहिष्णुता को समाप्त करने का कार्य कर रही है ? क्या सोशल साइट्स पर सक्रिय लोग निष्पक्ष होकर प्रतिक्रिया देते हैं ? पत्रकार व लेखकों से एक सवाल है क्या इतिहास के पन्नों में दबी असहिष्णु घटनाओं का बार – बार जिक्र करने से कोई भी आहत नहीं होता हैं मसलन 1984 में हुए दंगों पर बार –बार चर्चा से मारे गए सिक्खों के परिवार वालों के जख्म हरे नहीं होते ? क्या उनमें से कोई एक बदला लेने की बात नहीं सोच सकता ? संवेदनशील मुद्दों पर लेखकों, पत्रकारों व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को सावधानी पूर्वक अपनी बात कहनी होगी I इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी अनुशाशित रहना होगा संवेदनशील मुद्दों पर आयोजित होने वाली बहस के प्रसारण में ताकि लोगों के बीच फेसबुक , ट्विटर व अन्य संचार माध्यमों के द्वारा वैचारिक हिंसा न फैलाई जा सके I
एक बहस का मुद्दा और बनना होगा क्या संविधान द्वारा प्रदत्त वैचारिक अभिवयक्ति के अधिकार का दुरपयोग हो रहा है ? क्या वैचारिक अभिव्यक्ति पर होने वाली प्रतिक्रियाएं सहिष्णुता की प्रतीक हैं ?

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