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क्या संसद के शीतकालीन सत्र में सांसद विधाई कार्य करेंगे ?

Social issues
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डॉ भीम राव अम्बेडकर जी के जन्म के 125वें साल में संसद का शीतकालीन सत्र का प्रारंभ संविधान के प्रति प्रतिबद्धता जताने के लिए दो दिवसीय विशेष सत्र के आयोजन से हुआ I इसमें हुयी बहस के समापन पर हुए प्रधानमंत्री जी के भाषण से एक बात स्पष्ट हुयी कि विकास के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए कांग्रेस के सहयोग की आवश्यकता है I शेष पूरा समय सदन ने आरोप – प्रत्यारोप में गँवा दिया I क्या विकास के लिए सिर्फ मोदी जी को ही चिंता है ?ऐसा प्रतीत हुआ कि सदन में मौजूद भाजापा का हर सदस्य पिछली कांग्रेस सरकारों की गलतियाँ गिनाने में लगा था व अन्य विपक्षी सदस्य यह साबित करने की कोशिश कर रहे थे कि भाजापा हिन्दू कट्टरता को बढ़ावा दे रही है और सामाजिक ध्रुवीकरण करते हुए दिखाई दे रहे थे I इन सबके भाषणों से कभी भी यह नहीं लगा कि ये लोग भारत के मूल चरित्र “सर्व धर्म समभाव” और मिलजुल के रहने की भावना के समर्थक हैं I पूरे सदन में केवल माननीय मोदी जी आम सहमति की अपील करते हुए दिखाई दिये जिससे यह सवाल उठ खड़ा हुआ क्या जी एस टी बिल पारित हो जाने के बाद मोदी जी भी विरोध की राजनीती करते दिखाई देंगे ?
जी एस टी बिल का पास न होना मोदी जी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न ही नहीं बल्कि विकास की राह की मुख्य वाधा है और यह बिल कांग्रेस सरकार के समय से लंबित है I उस समय इस बिल को पास न होने देने में मुख्य अवरोध मोदी जी ने ही पेश किये थे I कोई भी राजनैतिक दल ऐसा नहीं है जिसने गलतियाँ न की हों I देश के लिए गलतियाँ गिना – गिना कर संसद का बहुमूल्य समय नष्ट करना उचित नहीं है Iविपक्षी संसद सदस्यों को मोदी जी की सहमति से काम करने की बात पर विश्वास करना चाहिए और पिछले 12 सालों में जिस तरह से संसद वाधित की जा रही है वह रवैया तुरत छोड़ देना चाहिए I मोदी जी को भी देश के विकास के हित में अपने कट्टरवादी हिन्दू नेताओं की जुबान पर लगाम लगानी होगी वैसे भी सरकार का डेढ़ साल का कार्यकाल बेकार हो गया है और युवा वर्ग केवल विकास जनित रोजगार के लिए टकटकी लगाये देख रहा है Iक्या संसद के शीतकालीन सत्र में सांसद विधाई कार्य करेंगे ?

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