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Iक्या लोकतंत्र के सफल कहे जाने के लिए मतदाता का निर्दलयी विचारधारा के साथ सुलझा व समझदार होना भी जरूरी है ?

Social issues
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माननीय नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार बिहार में बन गयीI गठबंधन धर्म का पालन करते हुए माननीय मुखमंत्री नीतीश कुमार जी ने अपने मंत्रिमंडल में जदयू के 12 बिधायकों को राजद के भी 12 बिधायकों को तथा कांग्रेस के 4 बिधायकों को स्थान दिया I सामाजिक न्याय की सियासत का ध्यान रखते हुए 28 मंत्रियो में से यादव जाति के 7, एससी 5 ,मुसलिम 4 ,अति पिछड़ा 3,कुशवाहा 3 ,कुर्मी 2 , राजपूत 2 , भूमिहार 1 , और ब्राह्मण वर्ग से 1 विधायक को मंत्रीपद दिया I बड़े भाई लालू यादव जी को उनके पुत्र तेजस्वी को उप मुख्यमंत्री बना कर सम्मानित भी किया I जनता के द्वारा चुने जाने के कारण इस पूरी प्रक्रिया में कोई कमी नज़र नहीं आती कारण गठबंधन सरकार चलाना आसान कार्य नहीं है और नीतीश कुमार जी को कानून राज के साथ साथ बिहार के विकास पर भी कड़ी मेहनत करनी है I बिडम्बना यह है कि पूरे मंत्री मंडल में तीन मंत्री उच्च शिक्षित और दो के पास वकालत की डिग्री है I 10 मंत्री अधिकतम 12वीं कक्षा तक ही पढ़े हुए हैं जिनमें से एक उपमुख्यमंत्री के पद पर आसीन हैं I इस पर कोई विशेष टिप्पड़ी नहीं बनती क्योंकि सब जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि हैं I सवाल केवल यह है क्या भारत जैसे लोकतंत्र में अशिक्षित व अल्प शिक्षित ही प्रशाशनिक पदों पर आसीन होने चाहिए ?यह स्थिति थोड़ी कम या थोड़ी जादा पूरे देश में है इसलिए इस टिप्पड़ी को केवल बिहार के सन्दर्भ में न देखा जाये केवल विचार किया जाये क्या देश को दिशा देने वाला उच्च शिक्षित अधिकारी वर्ग है ?
अभी उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हुए और अब प्रधानी के पद के लिए चुनाव हो रहे हैं I महिला आरक्षित सीट पर महिला को केवल रण में उतारा जा रहा है , प्रधानी की पूरी कमान तो आदमी के पास ही रहती है I बहुत सारी महिलाएं तो पढना व लिखना भी नहीं जानती केवल साक्षर हैं I अधिकतम प्रधान अल्प शिक्षित और गाँव में दबंगई और जातीय समीकरण के कारण बनते हैं I शिक्षित हों या न हों 5 वर्षों में इन नेताओं के रुतबे और धन संपत्ति में बढ़ोतरी तो हो ही जाती है I पंचायती राज का मंतव्य यह था कि स्थानीय समस्याओं का समाधान आसन व सुलभ हो जायेगा I समस्याएँ तो जस की तस रहीं पर पंचायती राज छोटी संसद जरूर बन गया I भ्रस्टाचार ऊपर से नीचे भी आ गया I क्या राजनेताओं की एक यह समझी बूझी योजना थी जिससे से उनका वोट बैंक न हिले ? क्या इसीलिए लोकल विधायक और सांसद इस छोटी संसद और ग्राम प्रधानो के चुनाव में सक्रिय होते हैं ? मिल – बाँट के खाने की नीति I अल्प शिक्षा और केवल साक्षर व भ्रस्टाचार का अजब संगम बन गया है भारत का प्रजातंत्र I क्या कभी राजनैतिक दल इस समस्या पर गहन चर्चा कर चुनाव सुधार की बात करेंगे ?
माननीय मोदी जी को अगर भ्रस्टाचार से लड़ना है तो पहले राजनेतिक दलों में व्यापत भ्रस्टाचार और अपराधियों की संलिपत्ता से लड़ना होगा I इस सवाल पर भी विचार करना होगा कि क्या अल्प शिक्षित मंत्री (चाहें संसद के हों चाहें विधान सभा के ) सचिवालय के अधिकारियों के इशारे पर नाचेंगे ? अल्पशिक्षित मंत्री और यदि साथ में भ्रष्ट (जिसकी संभावना 99% वर्तमान माहोल में ) देश के विकास में कितना योगदान करेंगे ओर कितना कानून का राज स्थापित करेंगे I सोचिये ? क्या चुनाव आयोग इस समस्या पर काबू कर सकता है ? क्या चुनाव लड़ने के लिए कोई योग्यता का निर्धारण हो सकता है ?राजनीती में घुसे अपराधियों पर चुनाव लड़ने पर रोक नहीं लगायी जा सकती है ? क्या कोई सामाजिक संगठन इन सारे सवालों पर उचित सुझाव देते हुए मतदाताओं को मताधिकार के वारे में शिक्षित कर सकता है ?
देश के लिए जरुरत है जागरुक चिंतन की Iक्या लोकतंत्र के सफल कहे जाने के लिए मतदाता का निर्दलयी विचारधारा के साथ सुलझा व समझदार होना भी जरूरी है ?

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