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सत्ता मद या राजनीती

Social issues
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इतिहास गवाह है कि जब जब सत्ता परिवर्तन हुआ है सत्ता ग्रहण करने वाली सत्ता ने पिछले सत्ता धारियों का नाम बदनाम करने और इतिहास से मिटाने के अथक प्रयास किये. हमारे देश भारत में मुगलों ने एक लम्बे समय तक शाशन किया जिसके दौरान अखंड भारत के विश्वास, धर्म और साहित्य का नामोनिशान मिटाने के लिए विकट प्रयास किये. क्या प्रथ्वी राज चौहान का नाम इतिहास में अंकित नहीं है? क्या हिन्दू धर्म जीवित नहीं है? क्या हिंदी साहित्य के महान कवि और हिन्दू धर्म के उत्थान में योगदान करने वाले महापुरुष कविवर तुलसीदास, सूरदास, कबीरदास, रहीमदास, मीराबाई आदि का नाम इतिहास के पन्नों से मिट गया?बिलकुल इसी तरह से अंग्रेजों ने अपने शाशन काल के दौरान भारतवासियों पर बहुत अत्याचार किये.क्या उनके शाशन काल में स्थापित यातायात और व्यापार का साधन रेलवे की स्थापना का कार्य भारतीय समाज भुला पायेगा? आज कितनी भी रेलवे की तरक्की हो जाये परन्तु जो रेलवे की नीव अंग्रेजी शाशन के दौरान रखी गयी क्या वह इतिहास के पन्नों से मिट जायेगी ? भले ही औरंगजेब रोड का नाम डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम साहब के नाम पर रख दिया जाये क्या औरंगजेब का नाम इतिहास के पन्नों से गायब हो जायेगा? देश के लिए पूर्ण समर्पित महान वैज्ञानिक कलाम साहब के नाम पर यदि किसी रोड का नाम नहीं रखा गया तो क्या कलाम साहब को कोई भी नहीं जानेगा?यह सारे सवाल क्यों? सोचिये इस देश के राजनेता अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए जिस प्रकार की ओछी राजनीत कर रहे हैं उससे किसका भला हो रहा है.भला केवल इन दलगत राजनीती करने वालों का और नुकसान केवल इनके बीच पिसने वाली जनता का है.
आज टीवी पर खबर सुनी कि डाक टिकट पर से पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गाँधी और श्रीमती इंदिरा गाँधी की तसवीरों को हटा दिया जायेगा उनके स्थान पर योग का लोगो छपेगा. सवाल यह है कि इसका प्रचार करने या डाक टिकट पर इंदिरा गाँधी जी की तस्वीर छपना बंद होने से क्या उनका नाम इतिहास के पन्नों से गायब हो जायेगा? क्या लोग भूल जायेंगे उनके योगदान को जो उन्होंने देश के लिए दिये. क्या ऑपरेशन ब्लू स्टार, और सर्वप्रथम बंगलादेश को मान्यता देने का सशक्त निर्णय लोग भूल जायेंगे. जिस आपात काल के समय को लोग काला इतिहास कहते हैं उसी के दौरान रेलगाड़ियों के समय पर आने – जाने की आम जनता प्रतियेक दिन रेलवे स्टेशन पर तारीफ करती है क्यों ?
बिलकुल इसी तरह से राजीव गाँधी के चित्र को डाक टिकट पर नहीं छपने से उनके द्वारा देश में लायी संचार क्रांति का अंत हो सकता है. आज उसी संचार क्रांति के कारण डिजिटल इंडिया का स्वपन साकार करने के काबिल हुए हैं सब लोग. इसके साथ ही श्री लंका में शांति सेना भेजने का निर्णय ( जिसके परिणाम स्वरुप उनको अपनी जान देनी पड़ी) क्या इतिहास के पन्नों से मिट जायेगा?
नाम हटाने, मिटाने , बदलने आदि की राजनीत किसी के किये हुए कार्यों को इतिहास के पन्नों से नहीं मिटा सकती. चुनाव जीतने, सरकार बनाने और सरकार में बने रहने के लिए एक दूसरे की गंध उघारना, गाली गलौज करना , आरोप लगाना और संसद ठप्प करना पिछले 10-12 सालों से राजनीतिज्ञों का शगल हो गया है. येन केन प्रकारेण इनका वर्चस्व बना रहे और इनकी बचकानी हरकतों पर मदारी के बन्दर की तरह जनता ताली बजाती रहे. समय सबसे बड़ा न्यायाधीश है जो ऊपर उठता है उसे एक न एक दिन नीचे अवश्य आना पड़ता है इसलिए सत्ता मद ख़राब है.
भगवान गणेश प्रथम पूज्य क्यों बने?जब सारे देवता और शिव पुत्र कर्तिकये प्रथम पूज्य बनने की प्रतिस्पर्धा में व्यस्त थे तब सारे संसार का कार्य अस्त – व्यस्त था. केवल गणेश जी सारे ब्रह्माण्ड के कार्य में भगवान शिव व माता पार्वती की सहायता हेतु उनके पास थे बिना किसी लालसा के . इसीलिए भगवान शिव ने गणेश जी को प्रथम पूज्य का पद दिया.देश के कल्याण के सारे कार्य बाद में और पद प्राप्त करने की प्रतिस्पर्धा पहले. यही सोच है देश के राजनेताओं की.

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