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14 सितम्बर 1949 को हिंदी को राज भाषा का दर्जा दिया गया.संविधान के अनुच्छेद 343 में प्रावधान है कि देवनागरी लिपि के साथ हिंदी भारत की राज भाषा होगी. तभी से हर वर्ष 14 सितम्बर देश भर में हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है मूलत: यह दिन राजभाषा दिवस है. हमने इसे हिंदी दिवस का रूप दे दिया है. इस दिवस को सरकारी कार्यालयों में बड़ी जोर शोर से मनाया जाता है. संकल्प लिए जाते हैं कुछ दिन संकल्प पालन भी होता है फिर वोही ढाक के तीन पात.क्या कारण है और कौन उत्तरदायी है इस परिस्थति के लिए? क्या सरकार ? नहीं हम सभी लोग और विशेषतया हिंदी भाषी क्षेत्र के लोग. जो अंग्रजी के दास भाव से मुक्त नहीं होना चाहते.रेलवे स्टेशन का आरक्षण फॉर्म, बैंकों के जमा और निकासी के फॉर्म, डाक घरों व सरकारी कार्यालयों से उपलब्ध फॉर्म सब हिंदी में होते हैं तो हम क्यों वहां पर अंग्रेजीदां बन कर फॉर्म भरते हैं. कारण एक ही है कि अभी तक दासत्व के भाव से बाहर नहीं आये हैं.घर में छोटा बच्चा होता है जो कि बोलना भी नहीं जानता उसे हाथ हिलाकर टाटा करना तो सिखाते हैं परन्तु हाथ जोड़कर नमस्ते करना नहीं क्यों?कान्वेंट स्कूल में पढ़ाने की होड़ में पहली कक्षा से अनिवार्यतः अंग्रेजी पढ़ाना शुरू कर देते हैं और हिंदी की उपेक्षा करते हैं क्यों?
सरकार चाहें तकनीक, न्याय शिक्षा आदि में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए कितने भी प्रयास कर ले जब तक अभिवावक अपने बच्चों के अन्दर शुरू से हिंदी प्रयोग के लिए जागरूकता और हिंदी प्रयोग में स्वाभिमान महसूस करने का भाव नहीं भरेंगे तब तक सरकारी कामकाज में हिंदी का आधिपत्य नहीं होगा. हिंदी विश्व सम्मेलनों से जहाँ विदेशों में हिंदी को सम्मान मिला है और हिंदी दिवस के मनाने कारण अहिन्दी भाषी क्षेत्र के लोगों में हिंदी के प्रति सम्मान और रूचि बढ़ी है वहीँ हिंदी भाषी लोगों ने हिंदी के प्रति उपेक्षा दर्शायी है. आज सभी हिंदी भाषी लोगों से अनुरोध करता हूँ कि आज का दिन हिंदी दिवस की तरह नहीं बल्कि मातृभाषा दिवस के रूप में मनाये. जैसे अपनी माँ की इज्जत करते हैं उसी तरह हिंदी को सम्मान दें. सरकार से भी अपेक्षा है कि देश भर के सभी विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा की शिक्षा को अनिवार्य कर दे. तभी विश्व में हिंदी भाषा का मस्तक गर्व से ऊँचा होगा. जय हिंदी जय भारत .
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