Menu
blogid : 21420 postid : 965819

डॉ कलाम को सच्ची श्रधांजली

Social issues
Social issues
  • 58 Posts
  • 87 Comments

भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम को श्रधांजली देने के लिए तमाम राजनेताओं ने अनेक विशेषणों का प्रयोग किया जैसे “एक भविष्यद्रष्टा वैज्ञानिक, एक राष्ट्रवादी और देश का सच्चा बेटा, देश का सपूत, भारत का सच्चा प्रतिनिधि,मिसाइल मैन, देश के पूर्व राष्ट्रपति और सर्वोच्च कमांडर,नेहरु का दूसरा रूप, बच्चों के कलाम काका ,एक अच्छे विद्वान शिक्षक आदि आदि” और श्रधांजली सुमन ट्विटर, टीवी और प्रिंट मीडिया के द्वारा अर्पित किये.क्या यह शब्द उन लोगों के दिल से निकले थे?क्या केवल प्रोटोकॉल निभाया था ? क्या उनकी यह सच्ची श्रधांजली है?
श्री सृजन पाल सिंह जो कि कलाम साहब के अंतिम छण में उनके साथ थे ने कुछ इस प्रकार लिखा है.
पिछले दो दिन से डॉ.कलाम इस बात से चिंतित थे कि एक बार फिर संसद नहीं चल रही है. उन्होंने कहा “मैंने अपने कार्य काल में दो विभिन्न सरकारों को देखा है. उसके बाद भी मैंने देखा है कि ऐसे अवरोध लगातार हो रहे हैं. ये ठीक नहीं है. मुझे वास्तव में एक ऐसे रास्ते की तलाश है जिससे यह सुनिशिचित हो कि संसद में विकास की राजनीत पर काम हो.”
आप भी सहमत होंगे कि सभी माननीय संसद सदस्य मिलकर विकास की राजनीत का रास्ता तलाश कर भविष्य में कभी भी संसद के कार्य को ठप न करने का निर्णय लें. तभी उनके द्वारा डॉ कलाम को सच्ची श्रधांजली होगी. क्या हमारे माननीय सांसद डॉ कलाम को सच्ची श्रधांजली देंगे?
कलाम सर ने एक बार कहा था, मेरी मौत को कोई छुट्टी मत करना. मुझे सच्ची श्रधांजली देनी है तो एक दिन ज्यादा काम करना. कलाम साहब के अंतिम संस्कार में उपस्थिति दर्ज कराने को तरजीह दी गयी और संसद को दो दिन के लिए स्थगित किया गया. क्या अंतिम संस्कार में उपस्थित होकर शव पर सुमन अर्पित करना ही सच्ची श्रधांजली है?
विगत कुछ वर्षों से संसदीय गतिरोध देखने में आ रहे है, बस मुद्दे भिन्न और गतिरोध पैदा करने वाले बदल जाते हैं. कुछ ऐसा रूप है उन नायकों का जिनको हम संसद में विकास का कार्य करने के लिए चुन कर भेजते हैं.इन माननीयों को चोला बदलने में देर नहीं लगती. यह लोग जब जनता के सामने आते हैं तो केवल वादे करते हैं. विपक्ष में बैठते हैं तो विरोध, सत्ता पक्ष में तो केवल इतना कहना कि विपक्ष काम नहीं करने देता.लगभग यह सभी लोग घोटालों और भ्रस्टाचार के बादशाह और जनता के द्वारा दिये गए टैक्स का दुरपयोग में माहिर हैं. क्या आप जानते हैं कि अपनी राजनीत सँवारने के लिए कितना जनता का धन बरबाद होता है. केवल एक छोटा सा आंकड़ा दूंगा कि संसदीय गतिरोध के कारण लगभग साढ़े छः करोड़ रुपया प्रति सप्ताह वर्वाद होता है. अब आप स्वयं अनुमान लगा लें कि इन लोगों की गैर जरुरी हरकतों की वजह से जनता का कितना जनता का धन बर्वाद होता है.
यह तो एक संयोग ही था कि एक ही दिन डॉ कलाम साहब और आतंकी याकूब मेनन सुपर्दे खाक हुए. जो नेतागण सुबह श्रधांजली अर्पित करने के लिए छुट्टी लिए थे वोही एक आतंकी याकूब मेनन की फांसी पर होने वाली ओछी राजनीत में सहभागी बन रहे थे. बड़ा अच्छा समय इन लोगों ने चुना याकूब मेनन की फांसी को सही/गलत ठहराने का. इन राजनेताओं का एक ही मकसद अपने दल को जनता के सामने कैसे पेश करें. क्या यह मान लिया जाये कि हमारे राजनीतिक दल लोकतंत्र के स्थान पर दलतंत्र को मजबूत करने में लगे हैं? क्या उनकी आस्था लोकतंत्र में समाप्त हो रही है? क्या वह लोग संसद में बहस करने के स्थान पर जनता को वर्गों में विभक्त कर अपने को मजबूत करने में लगे है?यदि ऐसा है तो जनता की लोकतंत्र में आस्था ख़त्म हो जायेगी जो दलों का अस्तित्व भी समाप्त कर देगा.
अंत में केवल एक उम्मीद कि डॉ कलाम को सांसद सच्ची श्रधांजली दें ऐसी व्यवस्था बना कर जिससे भविष्य में कभी भी संसदीय कार्य बाधित न हो और जनता का धन बर्वाद होने के स्थान पर विकास के कार्यों में लगे.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh