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संसदीय व्यवस्था पर कुठाराघात

Social issues
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क्या विश्व के सबसे बड़े लोक तंत्र की संसदीय व्यवस्था धराशाई होने वाली है?हम बड़े गर्व के साथ विश्व पटल पर अपनी संसदीय व्यवस्था को शीर्ष जन प्रतिनिधि मंच पुकारते हैं.अपनी संसद को जनतंत्र का मंदिर , भारत की अभिलाषा , स्वपन और देश को विकास के पथ पर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध वाद विवाद का वास्तविक मंच आदि कह कर पुकारते हैं. सबसे बड़े दुःख की बात यह है कि काफी लम्बे समय से सभी विधायी सदन माननीयों के अखाड़े नज़र आने लगे हैं. माननीय इस मंदिर का प्रयोग अपनी शक्ति प्रदर्शन के लिए करने लगे हैं. क्या संसदीय व्यवस्था कमजोर हो रही है?
आप सभी लोग इस बात से सहमत होंगे कि विधायी सदनों का कामकाज काफी लम्बे समय से घटा है. हल्ला और शोर – शराबा बढ़ा है. बहस से माननीय दूर भागते दिखाई देते हैं यदि बहस में भाग लेते भी हैं तो उनकी बातें गुणवत्ता विहीन होती हैं.क्या आपको प्रतीत नहीं होता कि भारत का जनतंत्र केवल दल तंत्र बनता जा रहा है?शायद इसीलिए विधायी सदनों में आम जनों की समस्याओं पर व्यापक चर्चा नहीं होती. माननीय केवल अपने दल की स्थिति मजबूत बनाने के लिए ज्यादा प्रयासरत नजर आते हैं और संसद व विधानमंडल में अपनी ही बनाई नियमावली का खुलकर उल्लंघन करते हैं.
यदि घोटालों की बात की जाती है तो घोटालों का बहुत लम्बा इतिहास है और घोटालों में गवाहों और आरोपियों की संधिगिद्ध मौत का सिलसला तो 60 के दशक से चला आ रहा है. नागरवाला कांड में तुलाराम की मौत से लेकर व्यापम घोटाले तक यही तो हो रहा है. यह बिलकुल संभव है कि यह सब शीर्ष पर बैठे लोगों से कुछ बातों पर सहमति के कारण हो रहा है. माननीय नेताजी किसी भी दल से (सत्ता पक्ष या विपक्ष) से सम्बंधित हों उन्हें एक दूसरे पर कीचड़ उछालने का कार्य सर्व प्रिय है कारण सभी हमाम में नंगे हैं.मूर्ख जनता उनके बहकावे में आती है और परेशान रहती है. संसद के माननीय अपनी दलगत राजनीत को मजबूत बनाये रखने के लिए ग्रामसभा, क्षेत्र पंचयात और विधान मंडल तक दखल रखते हैं और वहां पर पुष्ट होते भ्रस्टाचार पर मौन साधे रहते हैं. माननीय अब जन प्रतिनिध नहीं रह गए हैं वह तो राजा बन गए हैं. जो चाहे करें कोई रोकने वाला नहीं जब माननीयों के वेतन और भत्तों का बिल आएगा तो सभी (सत्ता पक्ष और विपक्ष) सर्वसम्मत से मेजों को थपथपा के पास कर लेंगे.इसमें दो मिनट भी नहीं लगेंगे. खुद सदन में अपना दायित्व नहीं निभाते फिर सरकारी कर्मचारियों को कर्मठ होने के लिए कैसे प्रेरित करें. खुद घोटालों में लिप्त हों तो इंजीनियरिंग विभाग के कर्मचारियों आदि पर काबू क्यों और कैसे करें.
संसदीय गतिरोध से एक वर्ग निराश है लेकिन आम जनता माननीयों के आचरण से निराश है

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