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स्वयं को भौतिक रूप से संवारने की होड़ समाज में प्रगति पर है अर्थात आदमी भौतिक सुखों के लिए उपलब्ध सभी संसाधन जुटाने में लिप्त है.परिणामतः नैतिकता, विचारों की शुद्धता से मीलों दूर जा रहा है. इस जैट युग में व्यक्ति का बौद्धिक विकास तो हो रहा है परन्तु भावनात्मक विकास का स्तर गिरता जा रहा है. इसीलिए देश में चिकित्सा पेशे से जुड़े लोगों के द्वारा शर्मशार करने वाली घटनाएँ होती है. चाहें कैंसर पीड़ित बच्ची लोबाबा का गलत तरीके से किया इलाज का मामला हो चाहें फतेहपुर निवासी शिवम के पेट दर्द के इलाज का मसला हो दोनों ही सम्बंधित डॉक्टरों के लालच को स्पष्ट इंगित करते हैं.यह दोनों मामले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुए इसलिए मीडिया का आकर्षण बने लेकिन इस तरह के मामले छोटे शहरों में प्राय: होते रहते हैं. क्या इन पर कोई रोक नहीं लग सकती और यह सब मामले क्यों होते हैं ?
चिकित्सा कर्म अब पवित्र और सेवा भाव का पेशा नहीं रह गया और रहे भी कैसे. जब मेडिकल कोलजों में प्रवेश की शुराआत ही किसी के लालच की पूर्ति से होती है तो स्वयं निर्णय लीजिये कि वह अपने लालच की पूर्ति क्यों नहीं करेगा? एआईपीऍमटी,सीपीऍमटी पेपर लीक और व्यापम घोटालों जैसे तरीकों से प्रवेश पाने वाले लोग क्या चिकित्सा कर्म को पवित्र पेशा बना रहने देंगे?मामला यंहा ही ख़तम नहीं हो जाता है जो लोग डोनेशन के द्वारा प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेते हैं और कई गुना अधिक फीस भी देते हैं वह लोग इस खर्च को कैसे भविष्य का निवेश नहीं मानंगे? यह भी स्वतः स्पष्ट है कि शिक्षा व्यवस्था में डोनेशन के बल पर, सिफारिश के बल पर या पेपर लीक का लाभ उठाकर जो भी विद्यार्थी प्रवेश पाते हैं वह किसी न किसी योग्य प्रतिस्पर्धी को बाहर का रास्ता दिखा देते हैं इस तरह से समाज का दुगना नुकसान करते हैं. इस नुकसान के लिए अगर पैसे लेने वाले जिम्मेदार हैं तो उससे पहले देने वाले और दोनों ही समाज के दुश्मन.
भारत में ऐसी लोगों की मानसिकता है कि सरकार सब कुछ करे. सरकार तो जनता की चुनी हुयी है और उसमें चुने गए लोगों में भी नैतिकता की भरपूर कमी है, अपराध, भ्रस्टाचार और लालच में लिप्त लोग क्या कुछ करेंगे? हाँ करेंगे केवल बयाँ बाज़ी, अपने दुषकर्मों को छिपाने के लिए विरोधियों पर आरोप प्रत्यारोप और उनके कुकर्मों का खुलासा. यह बात सरकार में मोजूद पक्ष और विपक्ष दोनों पर लागू होती है.
किसी भी देश के निर्माण में राजा (यहाँ पर सरकार) से ज्यादा योगदान स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय में कार्यरत विद्वानों का होता है और हमारे समाज में लाखों की संख्या में लेखक, पत्रकार,और विद्वान हैं क्या वह एक जुट होकर एक ऐसी क्रांति को नहीं ला सकते जिससे प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर बैठा लालच और कुविचार निकल कर ख़तम हो जाये. लालच समाज में एक कैंसर की तरह फ़ैल रहा है.इसे आप और हम खुद ही रोक सकते हैं.
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