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क्या विज्ञापन और मोदी जी की अपील से स्वच्छता अभियान सफल होगा

Social issues
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राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी ने स्वच्छता के बारे में कहा था कि जो व्यक्ति टैक्स देता है वह दिये गए टैक्स से चार गुना लाभ लेना चाहता है,इस प्रवर्ती पर अंकुश लगाने के लिए प्रातः उठकर म्युनिसिपल कौंसिल के अध्यक्ष को स्वयं इस कार्य में लगकर जनता को भी स्वच्छता के कार्य में जोड़ना होगा तभी स्वच्छ भारत बनेगा.इस बात को बताने का केवल मतलब इतना है कि केंद्र सरकार ने स्वच्छ भारत के अभियान के विज्ञापन पर एक साल में 94 करोड़ रूपये खर्च कर दिये हैं उससे देश की साफ़ सफाई पर कितना असर पड़ा है इसका आकलन किया जाना चाहिए.
इस संबंध में एक सत्य घटना बताता हूँ कि मेरे एक युवा मित्र ने मोदी जी से प्रेरित होकर रेलवे प्लेटफ़ॉर्म पर एक महिला को केला खाकर छिलका फेंकने पर कहा कि प्लेटफ़ॉर्म पर फेंकने के स्थान पर इसे आपको सामने रखे डस्ट बिन में डालना चाहिए तो उसने मेरे युवा मित्र का स्वागत अभद्र भाषा में करते हुए छिलका उठाकर डस्ट बिन में डाला. इस घटना से मेरा युवा मित्र बहुत व्यथित हुआ और उसने मुझ से कहा इससे अच्छा होता मैं स्वयं उठा कर फ़ेंक देता. फिर थोड़ा रूककर बोला सारा देश इस प्रकार के बेवकूफों से भरा पड़ा है उन्हें समझाने के लिए दंड की आवश्यकता है.
स्वच्छता अभियान को सफल बनाने के लिए विज्ञापन या राजनेताओं की झाड़ू लगाते हुए फोटो और उनके प्रेरक शब्द अब समाज को नहीं बदल सकते हैं. कारण राजनेताओं में ईमानदारी और नैतिकता का अभाव है. हर व्यक्ति अपने घर को साफ़ करता है और कूड़े को बाहर इस उम्मीद के साथ करता है कि सफाई कर्मचारी आगे का काम पूरा करेंगे. सफाई कर्मचारी भी कहता है कि जितना वेतन मिलता है उससे जादा काम हम करते हैं साथ में उसका दुःख यह भी है कि प्रत्येक माह नियमित रूप से वेतन उसे नहीं मिलता. साथ ही उसे राजनेताओं के शादी विवाह संबधी कार्यक्रमों में बंधुआ मजदूर की तरह काम करना पड़ता है. कूड़े के डिस्पोजल के लिए जो धन प्राप्त होता है उसका बन्दर बाँट भी होता है. पीड़ित सफाई कर्मचारी और जनता दोनों हैं.
स्वच्छता एक ऐसा विषय है जो व्यक्ति के अन्दर से उपजता है उसे प्रचार के माध्यम से नहीं उपजाया जा सकता.एक शशक्त शिक्षा अभियान की जरूरत है. दंड का प्रावधान होने से केवल गरीब ही पीड़ित होगा. पैसे वाले लोग तो इस भ्रष्ट तंत्र में दण्डित होंगे नहीं. राज नेता चाहें कितना भी सड़क पर थूकें उनसे किसी से कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं क्योंकि वह तो लोकतंत्र के राजा हैं.

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