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विकास या मंदिर

Social issues
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कुछ दिन पहले जयपुर में मेट्रो रेल का मार्ग प्रशस्त करने के लिए 6 मंदिरों को हटा दिया गया था.ऐसा सुनने में आ रहा है कि150 वर्ष पूर्व जयपुर की स्थापना के समय बने मंदिरों को तोड़े जाने से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ राज्य सरकार से काफी नाराज है साथ ही मंदिर तोड़े जाने के विरोध में 9 जुलाई को चक्का जाम कर आन्दोलन प्रस्तावित किया है.
इसके साथ यह भी खबर है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे मंदिरों को दूसरी जगह स्थापित करने के मामले में गंभीर हैं. जो मंदिर कहीं और स्थापित कर दिये गए हैं, उनके धार्मिक महत्व और वास्तु द्रष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए उन्हें सुन्दर व आकर्षक बनाया जायेगा.
अब विचारणीय विषय यह है कि क्या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का तुष्टीकरण विकास से ऊपर है.क्या चक्का जाम का प्रस्ताव जन मानस की आस्था को भड़काना नहीं है.चूँकि सरकार भाजपा की है अतः राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ऐसा कोई काम नहीं करना चाहेगा जिससे भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगे इसलिए उनको दूसरी जगह पर मंदिर बनाने के राज्य सरकार के फैसले से संतुष्ट होना होगा .
सभी ज्ञानी जनों से अनुरोध है कि वह सोचें कि मंदिरों पर खर्च होने वाला पैसा सरकार कहाँ से खर्च करेगी और यदि सरकारी खजाने से खर्च होना है तो उस पर पहला हक विकास मद में होने वाले खर्चों का है.सभी अर्थशाष्त्री भी यह जानते हैं कि निष्प्रयोज्य आस्तियों में निवेश राष्ट्र हित में नहीं होता.यदि सरकारी खजाने से नहीं होगा तो माननीय वसुंधरा राजे जी को बताना पड़ेगा धन का श्रोत.
यथार्थ तो यही है कि सर्व शक्तिमान ईश्वर को किसी भवन की जरुरत नहीं है.मनुष्य ने इन मंदिर, मस्जिदों और चर्च आदि को काले धन को छुपाने का एक माध्यम बना दिया है. यदि इन में निवेशित सम्पूर्ण धन समाज कल्याण में लग जाये तो अकल्पनीय विकास होगा

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