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क्या भ्रस्टाचार का ढोल अपनी बेमानियां छिपाने के लिए पीटा जाता है ?

Social issues
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क्या ईमानदारी का ढोल अपनी बेमानियां छिपाने के लिए पीटा जाता है ?किसी भी एक खुलासे में इतने व्यक्ति, पैसा , लेन – देन, अपराध और एक के बाद एक उघडती परतें छिपी होती हैं कि गिनना मुश्किल हो जाता है. क्या मोदी जी ने केवल संप्रग सरकार के समय हुए घोटालों/ बेईमानी का ढोल केवल सत्ता पाने के लिए पीटा? यह सत्य लगता है यदि निम्न घटनाओं पर नज़र डालें.
सारी दुनिया में फैले भ्रस्टाचार के लिए लोग तीन ‘C’ को जिम्मेदार मानते हैं. ये तीन ‘C’ हैं क्रिकेट, कॉर्पोरेट और क्राइम. वसुंधरा, सुषमा और ललित मोदी मामले में ये तीनों स्पष्ट हैं. कल तक भारतीय जनता पार्टी इन्हीं तीनों आधार पर संप्रग सरकार को लानत भेजने और मन मोहन सिंह का इस्तीफा मांगने में कोई कोर कसर नहीं छोडती थी,मगर आज जब उनकी दो प्रभावशाली नेत्रियों पर उँगलियाँ उठ रही हैं तो इनके बचाव में भाजपा के नेतागण वोही तर्क दोहरा रहे हैं जो संप्रग के पक्ष में कांग्रेस के प्रवक्ता दोहराते थे. सवाल है क्या राजग सरकार भ्रस्टाचार विरोधी है?
आज मीडिया के जबरदस्त युग में आम मतदाता से कोई बात छुपी नहीं रह सकती. जब से सुषमा और वसुंधरा का नाम आया और भी दिग्गजों के नाम खुलने लगे और सब लोग अपने अपने तरीके से सफाई देने में लग गए. यहाँ तक ललित मोदी के द्वारा ट्विट के जरिये सुरेश रैना, रविचंद्रन आश्विन और रविन्द्र जडेजा पर भी एक कथित सट्टे बाज के द्वारा रिश्वत लेने का आरोप लगाया साथ ही ICCI ने भी आरोप की जाँच चलने की पुष्टि की. इन सब बातों से स्पष्ट संकेत मिलता है कि कोई भी माननीय दूध का धुला नहीं है. सभी हमाम में नंगे हैं. इसीलिए माननीय मोदी जी की चुप्पी भी संदिग्ध प्रतीत होती है. क्या मोदी जी भी भ्रष्ट हैं?
भाजपा के युगपुरष माननीय अडवानी जी ने बयाँ दिया कि जब उन पर हवाला से धन लेने का आरोप लगा था तो उन्होंने अटल जी के मना करने के बाद भी अपने पद से इस्तीफा देकर राजधर्म का पालन किया था.भाजपा चाहें वरिष्ठ नेताओं को अपने अपने स्वार्थ के तहत एक किनारे कर दे परन्तु आम जनता महान नेताओं को हमेशा सम्मान देती है और अडवानी जी उनमें से एक हैं.जनता अब समझने लगी है जैसे अधिकतर घरों में पिताश्री बोलते रहते हैं और उनको युवा नहीं सुनता है उसी तरह की स्थिति माननीय अडवानी जी की है.
अगर नैतिक जिम्मेदारी की बात करें तो जब भारत में प्रथम रेल एक्सीडेंट हुआ था तो तत्कालीन रेलवे मिनिस्टर श्री लाल बहदुर शाश्त्री जी ने अपनी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. उनको भी तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरु जी ने मना किया था. शास्त्री जी और अडवानी जी जैसे नेता अब नहीं मिलेंगे. भ्रस्टाचार हमारे प्यारे देश की नसों में बहने लगा है कोई भी सरकार आ जाये इस आपदा से आम जनता को मुक्त नहीं कर सकती.सवाल वहीँ खड़ा है क्या भ्रस्टाचार का ढोल सत्ता को पाने के लिए पीटा गया?क्या 40 साल पहले लगाये गए आपात काल का मुद्दा जनता का दिमाग भटकाने के लिए उठाया जा रहा है? मोदी जी ध्यान रखिये जैसे आज की तारीख में 1 साल से लेकर 65 साल के लोगों के लिए स्वतंत्रता के लिए उठाये गए कष्टों की बात इतिहास हो गयी है उसी तरह 1 साल से लेकर 40 साल तक के लोगों के लिए आपातकाल एक इतिहास की घटना है. जुल्मों का इतिहास चाहें अंग्रेजों का हो चाहे इंदिरा गाँधी का , ज्वलंत मुद्दों से मतदाता को भ्रमित नहीं कर सकता. उसके लिए तो ज्वलंत मुद्दे रोजी , रोटी के साथ साथ उसके विकास में बाधक भ्रस्टाचार है जो कि शिक्षा जगत को भी डस चुका है. सामूहिक नक़ल, परीक्षाओं के पेपर लीक की घटनाएं, बच्चों को केवल हतोसाहित ही नहीं कर रहे बल्कि उन्हें विद्रोही भी बना रहे हैं. आम जनता का भविष्य अंधकार में है. मोदी जी जिस जनता ने आपको बहुत विश्वास के साथ उठाया है उसका विश्वास अगर टूट गया तो क्या होगा पता नहीं?

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