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भारत में अगर डाटा एकत्र किये जायें तो हर कसबे की गली गली में इंग्लिश मीडियम पब्लिक स्कूल, गाँव गाँव में इंटर और डिग्री कॉलेज और इतना ही नहीं ज्यादातर शहरों में इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज और ऍम बी ए कॉलेज उपलब्ध हैं. दुर्भाग्य इनमें से अधिकतर स्कूल कॉलेज व्यवसायिक संस्थान बने हुए हैं जो कि केवल डिग्री धारक युवक तैयार कर रहे हैं. जिसका नतीजा यह है 90% ग्रेजुएट नौकरी के योग्य नहीं और उनके पास कोई भी ऐसा हुनर नहीं जिससे वह अपने जीवन यापन का तरीका जुटा लें.
शिक्षा क्षेत्र में व्यापत भ्रस्टाचार देश को किस ओर ले जायेगा ?प्रतिस्पर्धा के इस युग में नैतिकता दूर की कौड़ी हो गयी है. देखिये इस विज्ञापन को जो कि A-Set Training & Research institute, New Delhi ने दिया है जिसमें बेरोजगारी की मुख्य समस्या को भी अपने कॉलेज के प्रचार सामिग्री के रूप में प्रयोग कर लिया. शायद इस देश के लोगों को जिन्दा रहने के लिए बिकना जरूरी है.
जिस विज्ञापन का मैं उल्लेख कर रहा हूँ वह दिनांक 03/06/2015 के दैनिक जागरण के “परशिष्ट प्रष्ठ जोश “ में छपा है
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