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एक खबर सुनी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर एक और किताब बम फूटा.बहुत ही अफसोस होता है यह जानकर कि महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए लोग घपले , घोटालों और गड़बड़ियों के खिलाफ मौके पर तो बोले नहीं और अब वर्षों बाद किताब लिखकर क्या कहना चाहते हैं यदि यह लोग मौके पर सत्य उद्घाटित कर देते तो देश का भला होता
सबसे पहले मनमोहन सिंह जी के मीडिया सलाहकार संजय बारू ने किताब लिखकर यह सिद्ध करने की कोशिश की कि सोनिया गाँधी का अनुचित दखल था फिर पूर्व कोयला सचिव पी सी पारीख ने एक किताब लिखकर देश को यह समझाने की कोशिश की कि उनोहने तो सब कुछ सही किया , केवल मनमोहन सिंह जी ने अपना काम सही तरह नहीं किया और अब प्रदीप बैज़ल भी किताब के जरिये कह रहे हैं कि 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में दयानिधिमारान के साथ साथ मनमोहन सिंह भी जिम्मेदार हैं क्योंकि वह अगर चाहते तो ए राजा को मनमानी करने से रोक सकते थे और तो और पूर्व प्रधानमंत्री ने प्रदीप जी को दूर संचार मंत्री के अनुसार काम करने के लिए विवश किया और न करने की स्थिति पर धमकाया भी.
अब सवाल यह उठता है यह तीनों लोग मौके पर क्यों नहीं बोले ? क्या इसलिए यह सभी अपना कार्यकाल पूरा करना चाह रहे थे ? क्या किताबें लिखकर देश के सामने या वर्तमान सरकार के सामने अपने आपको साफ़ सुथरा दिखाने की कोशिश ?क्या अपने पापों का घड़ा माननीय मनमोहन सिंह जी पर फोड़ने की कोशिश ? घोटालों की जाँच पड़ताल का काम जाँच एजेंसीज का और अपराधी घोषित कर दंड देने का अधिकार केवल न्यायपालिका का काम.
परन्तु यह प्रवर्ती ठीक नहीं कि जब घोटाले हो रहे हों तो मौन रहा जाये और बाद में किताबों के जरिये खुद को सच्चाई का पक्षधर कहा जाये. बार बार मेरे मन में यह सवाल उठ रहा है कि जो वर्तमान सरकार ढोल पीटकर अपने एक साल के कार्य काल को घोटाला मुक्त कह रही है. क्या 10-12 साल बाद कोई महत्वपूर्ण पद पर आसीन व्यक्ति देश के सामने सच्चाई खोलने वाली किताब रख देगा? हे भगवान मौके पर बोलने वाले लोंगों की इस देश में बहुत जरूरत है. रहम कर प्रभो
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