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Social issues
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Tools ‹ Social issues — WordPress.मिडटाउन मैनहट्टन में न्यूयॉर्क इकॉनमी क्लब के एक कार्यक्रम के दौरान रिज़र्व बैंक के गवर्नर श्री रघुराम राजन जी ने कहा कि कोई कमजोर घरेलू और सरकारी मांग की भरपाई कैसे कर सकता है खासकर तब जब कर्जों को बट्टे खाते में डालने का चलन बन गया हो. असल में यह होता है कि ब्याज दरों में कटोती व टैक्स छूटों के जरिये निवेश और रोजगार सृजन को प्रोतसाहित किया जाता है. मगर इसके बावजूद अगर कर्ज पुनर्गठन जैसे कारणों से उपभोक्ताओं के स्तर पर मांग लम्बे समय तक बेहद कमजोर बनी रहे तो नए निवेश पर मिलने वाला रिटर्न ही समाप्त हो सकता है

इस स्टेटमेंट के परिप्रक्षेय में अगर देखें तो आम जनता ने जो उम्मीदें नयी सरकार से लगा रखी हैं वह हकीकत से परे नज़र आ रही हैं. मोदी सरकार ने पिछले एक साल के कार्य काल में युवा वर्ग की उम्मीदों को पंख लगा दिये हैं वह उनकी तरफ बहुत आशा से देख रहा है परन्तु सवाल यह उठ रहा है कि जब तक उपभोक्ता की क्रय शक्ति नहीं बढती तब तक मेड इन इंडिया अभियान सफल नहीं हो सकता है

कोई भी इंडस्ट्री तभी सफल होती है जब उपभोक्ता के पास क्रय शक्ति हो और हमारे भारतवर्ष के उपभोकताओ ने कर्ज लेकर उपभोग करना सीख लिया है साथ ही जन धन योजना के तहत कमजोर वर्ग की लोगों को भी रूपए 5000/- तक के ओवरड्राफ्ट की सुविधा उपभोग के लिए मिल जायेगी. सामान्य ज्ञान के अनुसार मैं केवल इतना जानता हूँ कि आदमी की आय में निरंतर वृधि ही किसी घर, परिवार, समाज और राष्ट्र को सशक्त बना सकती है, ओस चाटकर प्यास नहीं बुझ सकती है

जिस देश का अभी भी मुख्य रोजगार कृषि है उसके ही उतपादों का मूल्य न्यूनतम निर्धारित किया जाता है उसके पीछे एक कारण उद्योगों को सस्ता रॉ मटेरियल उपलब्ध कराना है. साथ ही वोही किसान अपनी तत्काल जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने उत्पाद का न्यूनतम मूल्य भी नहीं ले पता है और कुछ लोग उसकी मजबूरियों का लाभ उठाते हैं. यही किसान देश का मुख्य उपभोक्ता है जो कि साहूकार और बैंक के कर्ज तले दबा है और इसी किसान के बहुत  सारे बैंक कर्जे पुनर्गठित हैं

अब देखिये मुख्य उपभोक्ता इतना कमजोर पर देश के उत्थान का सबसे बड़ा सहयोगी. बैंकिंग इंडस्ट्री से जुड़े लोग मेरी बात समझ सकते हैं कि उद्योंगो को सफल बनाने के लिए कम दरों पर ब्याज का ऋण, टैक्स में भारी छूट मिलने के बाद भी कर्जे फंस जाते हैं तो निवेश पर कितना रिटर्न मिलेगा

ऊपर लिखी बातें कहने का एक ही सार है कि अभी दूर दूर तक उपभोक्ता की क्रय शक्ति बढ़ती नहीं दिखाई दे रही है. शायद यही कारण हो कि सरकार अपने एक साल के कार्यकाल का ढोल पीटकर मतदाता को भ्रमित करना चाह रही है. बड़ी –बड़ी  उम्मीदें युवा मतदाताओं में जगा कर सत्ता हासिल की थी और अभी आगे भी जल्दी कोई उम्मीद नहीं दिख रही है इसलिए विपक्ष पर आरोप प्रत्यारोप भी करना है. परन्तु भारत का मतदाता जागरूक है भ्रमित नहीं होता

अतुल कुमार सक्सेना , फर्रुखाबाद

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